नई दिल्ली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच वनटांगिया गांवों की तस्वीर बदल दी है। विकास से दूर इन गांवों तक अब सड़क बन गई है। स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र हैं। बिजली की व्यवस्था हो गई है। आरओ का पानी भी उपलब्ध कराया गया है। हर बार की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री वनटांगिया गांव जाएंगे।
वनटांगिया गांव विकास से दूर थे। सांसद रहते गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ ने समस्याएं दूर कराने की कोशिश की लेकिन बहुत सफलता नहीं मिल सकी। मुख्यमंत्री बनते ही योगी आदित्यनाथ ने कुसम्ही जंगल से सटे पांच वनटांगिया गांवों के विकास पर ध्यान दिया। नतीजा है कि वनटांगिया गांवों में विकास दिखने लगा। इन गांवों में रहने वाले परिवारों का राशन कार्ड बन गया। आयुष्मान योजना का लाभ मिलने लगा। मतदाता भी बन गए।
14 नवंबर को वनटांगियां गांव आएंगे मुख्यमंत्री
गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 13 नवंबर को अयोध्या में रहेंगे। 14 को सीधे हेलीकॉप्टर से वनटांगिया गांव पहुंचेंगे। वनटांगिया गांव में दिवाली मनाने का सिलसिला 2009 से चल रहा है।
बच्चों में टॉफी वाले बाबा के नाम जाने जाते हैं योगी
योगी को वनटांगिया गांव के बच्चे टाफी वाले बाबा के नाम से जानते हैं। योगी जब पहली बार वहां गए तो बच्चों को टाफी दिए। उनके लिए कपड़े , मिटाई , आदि लेकर गए पर बच्चे टाफी को याद कर उन्हें टाफी वाले बाबा के नाम से जानने लगे। आज भी दीपवाली को जब वह जाते हैं तो लोगों के घरो तक जाकर उनका हाल चाल लेते हैं। वह बच्चों से उसी आत्मीयता से मिलते हैं।
सांसद बनने के साथ ही शुरू किया बदलाव का प्रयास
वनटांगिया के रामगणेश कहते हैं कि वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने थे। सांसद के संज्ञान में आया कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं। इस तरह की गतिविधि पर लगाम के लिए योगी ने पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान दिया। सरकारी सहयोग नहीं मिला तो महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़े संस्थानों को जिम्मेदारी दी।
एमपी कृषक इंटर कॉलेज, एमपीपीजी कॉलेज जंगल धूसड़ और गोरक्षपीठ से संचालित गुरु श्रीगोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा गांवों तक पहुंची। जंगल तिनकोनिया नंबर-3 गांव में 2003 से शुरू प्रयास 2007 तक आते-आते मूर्त रूप लेने लगे।
वन विभाग ने कराया था योगी पर मुकदमा
एमपीपीजी कॉलेज जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ प्रदीप राव का कहना है कि वन्यग्रामों के लोगों को जीवन की मुख्यधारा में जोड़ने के दौरान 2009 में योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा भी हुआ था। गोरक्षपीठाधीश्वर ने वनटांगिया गांव के बच्चों की शिक्षा के लिए एक अस्थायी निर्माण कराया था। इसपर वन विभाग ने कानूनी कार्रवाई की थी। इसके बावजूद अस्थायी स्कूल की व्यवस्था की है।
चार वर्षों में मिटा दी सारी कसक
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने वनटांगिया समुदाय की वर्षों की कसक मिटा दी। पहले वर्ष के कार्यकाल में ही वनटांगिया गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दे दिया। राजस्व ग्राम घोषित होते ही वनग्राम हर उस सुविधा के हकदार हो गए, जो सामान्य नागरिक को मिलते है। अब वनटांगिया गांवो में सीएम योजना के तहत पक्के आवास, कृषि योग्य भूमि, आधारकार्ड, राशनकार्ड, रसोई गैस है। बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। पात्रों कोपेंशन योजनाओं का लाभ मिलता है।
दिवाली में देते हैं खास तोहफा
पिछली दिवाली कुसम्ही जंगल के वनटांगियों के लिए बेहद खास थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जंगल तिनकोनिया नंबर-3 में कई परिवारों का गृह प्रवेश कराया था। वनटांगिया के दीपक जलाए। खीर और हलवा भी खाया था। इससे परिवार गदगद दिखे।
पिछली दिवाली तक इस वनटांगिया गांव में 85.876 हेक्टेयर खेती की जमीन, 9.654 हेक्टेयर आवासीय जमीन, 788 मुख्यमंत्री योजना के आवास, 895 शौचालय, 49 को निराश्रित पेंशन, 38 को दिव्यांग पेंशन, 125 को वृद्धा पेंशन, 647 को सौभाग्य योजना का बिजली कनेक्शन, 895 को अंत्योदय राशनकार्ड और 600 को उज्ज्वला योजना का रसोई गैस कनेक्शन मिल चुका था।
कौन हैं वनटांगिया
अंग्रेजी शासनकाल में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने साखू के पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की टांगिया विधि का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए।
वर्षों से उपेक्षित थीं वनटांगिया बस्तियां
वर्ष 1918 में गोरखपुर के कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नंबर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में पांच बस्तियां बसाई गईं। 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन स्तर नहीं सुधरा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास न तो खेती के लिए जमीन थी । न ही झोपड़ी के अलावा किसी तरह के निर्माण की इजाजत।
पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं था। और तो और इनके पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था, जिसके आधार पर मतदान का अधिकार मिल पाता। वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय अलग से रहता था।