18.1 C
New Delhi
Saturday, March 16, 2024

जानिए क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद, ASI के सर्वे से सामने आएगा सच?

- Advertisement -spot_imgspot_img
- Advertisement -spot_imgspot_img

नई दिल्ली। ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) केस में वाराणसी की एक अदालत ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित परिसर की एक व्यापक पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने एएसआई से अपने सर्वे में यह पता करने के लिए कहा है कि क्या विवादित स्थल पर मौजूद धार्मिक ढांचे का निर्माण किसी और जगह के ऊपर तो नहीं हुआ है। एएसआई यह भी पता लगाएगी कि क्या इस विवादित परिसर में ढांचे के निर्माण में किसी तरह का धार्मिक अतिक्रमण तो नहीं हुआ है। फास्ट ट्रैक कोर्ट के इस आदेश का सुन्नी वक्फ बोर्ड और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने चुनौती दी है। ओवैसी ने कहा है कि इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाएगी।

क्या है काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) विवाद
मुकदमा दायर करने वाले हरिहर पांडे का दावा है कि यह मंदिर अनंतकाल से है और 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का पुनर्निमाण कराया। अकबर के शासन के दौरान भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। याचिकाकर्ता का दावा है कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के फरमान पर स्थानीय अधिकारियों ने ‘स्वयंभू भगवान विशेश्वर का मंदिर गिरा दिया और उसके स्थान पर मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल करते हुए मस्जिद का निर्माण किया।’ वादी पांडे का दावा है कि विवादित परिसर में भगवान विशेश्वर का 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग मौजूद है। इस मामले में साल 1991 में तीन लोगों ने पंडित सोमनाथ व्यास, (व्यास के पूर्वज इस मंदिर के पुजारी रहे हैं), संस्कृत के प्रोफेसर डॉ रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया। दो याचिकाकर्ताओं व्यास एवं शर्मा का निधन हो चुका है।

कोर्ट के फैसले पर ओवैसी ने उठाए सवाल
फास्ट ट्रैक के फैसले पर एआईएमआईएम नेता ओवैसी ने सवाल उठाए हैं। यहां तक कि ओवैसी ने एएसआई की जांच-पड़ताल को संदिग्ध बताया है। एएसआई के निष्कर्षों को कठघरे में खड़ा करने के लिए एआईएमआईएम नेता ने अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी का हवाला दिया है जिसमें कोर्ट ने कहा कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद केस में उसका फैसला एएसआई के पुरातात्विक निष्कर्षों पर आधारित नहीं है।

ओवैसी ने एएसआई पर हिंदूवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है। ओवैसी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मस्जिद कमेटी को इस आदेश के खिलाफ ऊपरी अदालत में तुरंत अपील करने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि एएसआई सिर्फ धोखाधड़ी करेगी और इतिहास दोहराया जाएगा जैसा कि बाबरी केस में हुआ।

क्या है प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट
साल 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट संसद से पारित किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि अयोध्या केस को छोड़कर आजादी (1947) के पहले धार्मिक स्थल से जुड़े विवादों को कोर्ट में नहीं लाया जाएगा।

विवादित धार्मिक स्थलों पर यथास्थिति बनी रहेगी। नरसिम्हा राव सरकार जब यह विधेयक लेकर उस समय अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन चल रहा था। यह एक्ट काशानी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर भी लागू होता है।

कानूनों की न्यायिक समीक्षा कर सकता है कोर्ट
मुस्लिम संगठनों का कहना है कि प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट-1991 धार्मिक रूप से विवादित स्थलों को कोर्ट में चुनौती देने से मना करता है। फास्ट ट्रैक कोर्ट का आदेश इस एक्ट का उल्लंघन है। कोर्ट इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं कर सकता है। हालांकि कानून के जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट किसी की एक्ट की न्यायिक समीक्षा कर सकता है। कोर्ट को यह अधिकार संविधान से मिला हुआ है।

- Advertisement -spot_imgspot_img

Latest news

- Advertisement -spot_img

Related news

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here