नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते प्रसार में प्रकृति का साथ ही हमें बेहतर माहौल दे सकता है। वर्तमान में हमारा जीवन जीने का जो तरीका है, वह प्रकृति के अनुकूल नहीं है। प्रकृति का उपभोग करने की मनुष्य की प्रकृति के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इसी कारण अब प्रकृति के संरक्षण की बहुत जरूरत है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ समर्थित पर्यावरण गतिविधि विभाग एवं हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन के प्रकृति वंदन कार्यक्रम में वर्चुअल बौद्धिक उद्बोधन दिया। उन्होंने अपील की कि इस समय प्रकृति संरक्षण बेहद जरूरी है। उन्होंने आम लोगों को प्रकृति से जुडऩे का संदेश भी दिया। भागवत ने कहा कि प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना हमारी भारतीय संस्कृति-परंपरा का अभिन्न और अनूठा हिस्सा है। प्रकृति से हम हैं, हमसे प्रकृति नहीं है।
उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि हम प्रकृति से पोषण पाते हैं, यह भाव हमारी आने वाली पीढिय़ों में बना रहे इसका उत्तरदायित्व हमारा है। उन्होंने कहा कि प्राण धारणा के लिए हम सृष्टि से कुछ लेते हैं, शोषण नहीं करते। यह जीने का तरीका हमारे पूर्वजों ने समझा और केवल एक दिन के नाते नहीं, एक देह के नाते नहीं, पूरे जीवन में उसको रचा बसा लिया। भारत में यह तरीका 2000 वर्षों से प्रचलित है।
उन्होंने कहा कि लेकिन वर्तमान समय में दुनिया में अभी जीवन जीने का जो तरीका प्रचलित है, वह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। यह तरीका प्रकृति को जीतकर मनुष्य को जीना सिखाता है, जबकि हमें प्रकृति का पोषण करना है, शोषण नहीं। भागवत ने कहा कि हमारे यहां नागपंचमी मनाते हैं, गोवर्धन पूजा है, तुलसी विवाह है, इन सबको आज के संदर्भ में उचित ढंग से मनाते हुए हमें हमारे संस्कारों को पुनर्जीवित करना है। उल्लेखनीय है कि आरएसएस पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी जागरूक है। पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और भूमि संरक्षण के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव जगाना भी उद्देश्य है।